दुर्घटनाओं की दशा में, प्राथमिक उपचार के निम्नलिखित सामान्य निर्देशों का पालन करना चाहिए :
चोट खाए हुए व्यक्ति को आराम की स्थिति में उसके सिर को उसके शरीर के समतल रखते हुए उस समय तक लिटाए रखिये, जब तक आप यह न जान लें कि चोट गंभीर है।
यह मूर्छा के विरूद्ध एक बचाव की कार्यवाही है और ऐसी हालत को जिसे "सदमा (shock)" कहते हैं, रोकने में मदद करता है। एक अप्रशिक्षित (बिना ट्रेनिंग पाया हुआ) व्यक्ति सामान्य रूप से यह चाहता है कि रोगी उठकर बैठ जाय या उसे खड़े होने में मदद देने की कोशिश करता है। यदि रोगी का चेहरा लाल पड़ गया हो, तो आप रोगी के सिर को ऊपर उठा सकते हैं। अगर वह कै करता है, तो आप उसके सिर को एक तरफ फेर सकते हैं जिससे कि दम घुटना (choking) रूक जाये, नहीं तो नियम यह है कि उसे (रोगी को) इस अवस्था में लिटाये रखना चाहिए कि उसका सिर समतल रहे।
खून के बहने, सांस के रूकने, घावों, जलने के घावों, हड्डी टूटने और जोड़ों के हटने (dislocations) को तलाश कीजिए। इस बात का यकीन कर लीजिए कि आपने उसकी सभी चोटों का पता लगा लिया है-
किसी चोट की एक खास पहचान दर्द का होना है। जब आप किसी घायल आदमी की परीक्षा कर रहे हों, तो उसे सम्भव गम्भीर चोटों के सिलसिले में खुद ही बताने दीजिये। जब आप किसी घायल व्यक्ति की परीक्षा करें, तो उसके कपड़ों को काफी हटा दीजिए जिससे यह निश्चित किया जा सके कि उसे चोट किस हद तक लगी है। यदि आप ऐसा कर सकें, तो कपड़े को सीवनों को ही फाड़ डालें। सामान्य तरीके से कपड़ों के उतारने में बेकार की पीड़ा पहुंच सकती है और उससे चोट भी बढ़ सकती है। अगर आप देखें कि कपड़ों के भीतर से खून रिस रहा है या कोट की किसी आस्तीन से खून निकलकर बह रहा है, तो कपड़ों को काफी हटा दें जिससे घाव को साफ-साफ देखा जा सके।
अधिकांश मामलों में, आप रोगी को कुछ सेकेण्ड तक ध्यान से छाती की परीक्षा करके, यह निश्चय कर सकते हैं कि क्या रोगी सांस ले रहा है। यदि दम घुटने से (asphyxiation) सांस लेना बंद हो गया हो तो, जैसा कि डूबने में, या बिजली के धक्के लगने में किया जाता है, कृत्रिम सांस दिलाने (artificial respiration) की तुरंत आवश्यकता होती है। उस समय भी जब सिर में चोट लग जाने पर रोगी का सांस लेना रूक जाय और वह नीला पड़ जाय, कृत्रिम सांस दिलाई जाती है।
उस दशा में जब किसी एक ही दुर्घटना में कई व्यक्ति चोट खा गए हों, तो यह अत्यन्त आवश्यक है कि प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति पूरी स्थिति का जल्दी से सर्वेक्षण करे और यह निश्चित करे कि किन पीड़ित व्यक्तियों को ऐसी चोटें लगी हैं जिन पर तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
रोगी से बातचीत करके यह पता लगाइए कि क्या वह होश में है। यदि वह होश में है, तो वह सामान्यतया आपको यह बता सकेगा कि उसे किस जगह चोट लगी है। याद रखिए कि यदि किसी दुर्घटना के बाद कोई रोगी बेहोश है या आधा होश में है, तो इसकी वजह प्राय: सिर में लगी चोट (head injury) होती है। एक या दोनों ही कानों से या नाक से खून बहने से, यदि इन हिस्सों में कोई सीधी चोट नहीं लगी है, सामान्य रूप से यह पहचान मिलती है कि खोपड़ी टूट गई है।
रोगी की नाड़ी की परीक्षा कीजिये। लेकिन यह बात याद रखिये कि नाड़ी के न मिलने से यही संकेत नहीं मिलता कि मौत हो ही गई है। चेहरे के रंग को देखिए। लाल पड़े हुए या सामान्य रंग से यह अर्थ निकलता है कि नाड़ी जोरदार है और खून का दौरा अच्छा है। पीले पड़ गए चेहरे का अर्थ है कि नाड़ी कमजोर है और खून का दौरा खराब है। ऐसे मामलों में जिनमें खून बहुत गंभीर रूप से बहा हो, शक हो कि अन्दरूनी खून बहा है या सिर में चोट लगी है, उत्तेजक दवायें (stimulants) नहीं देना चाहिए।
चोट खाए हुए व्यक्ति को गरम रखिये-
बहुत अधिक मात्रा में बाहरी गर्मी का प्रयोग न कीजिए लेकिन शरीर के सामान्य ताप को बनाए रखिए। ऐसा करना गम्भीर सदमे को रोकने के लिए बहुत ही जरूरी है। यदि मौसम ठंडा है, तो रोगी को नीचे से भी और ऊपर से भी ओढ़ाना आवश्यक होगा।
डाक्टर या एम्बुलेन्स बुलाने के लिए किसी को भेजिए-
संदेश ले जाने वाला आपका व्यक्ति ये सूचनायें अवश्य देगा: घायल व्यक्ति कहाँ है; चोट की किस्म, लगने का कारण और उसकी संभव हद क्या है और क्या-क्या वस्तुएं मौजूद हैं; किस प्रकार का प्राथमिक उपचार दिया जा रहा है। स्पष्ट है कि ये सभी सूचनायें नितांत आवश्यक हैं, क्योंकि इनसे डाक्टर को यह ठीक-ठीक पता चल जायेगा कि उसे किस जगह जाना है, उसे किस साज-सामान की जरूरत पड़ेगी और यह कि उसके घटनास्थल पर पहुंचने के पहले कौन-कौन से उपाय काम में लाये जायें।
शान्त रहिये और जब तक कि ऐसा करना बिल्कुल ही आवश्यक न हो, चोट खाये हुए व्यक्ति को एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर ले जाने की जल्दी न कीजिये-
आपको रोगी को उस समय तक नहीं हटाना चाहिए जब तक कि आपको उसकी चोटों की किस्मों और विस्तार के बारे में सही अन्दाजा न हो जायं और आपने उस प्राथमिक उपचार न दे दिया हो।
किसी बेहोश व्यक्ति को कभी भी पानी या कोई दूसरा तरल पदार्थ न दीजिए-
पानी श्वास की नली में घुस सकता है और बेहोश व्यक्ति को उसका दम घुटाकर मार सकता है। लेकिन यदि चोट खाया हुआ व्यक्ति होश में हो और यदि पेट में गंभीर चोट लगने के कोई निशान नहीं हों, तो उसे जितना भी पानी वह मांगे, दे दीजिए, लेकिन धीरे-धीरे और केवल घूंटों में। विस्की और ब्राण्डी प्राथमिक उपचार की उचित उत्तेजक दवाएं नहीं है। उनसे काफी नुकसान पहुंच सकता है। गर्म चाय और गर्म कहवा देना संतोषजनक है, खास तौर से, उस समय जब कि रोगी के हाथ-पैर ठंडे हों।
तमाशबीनों को चोट खाए हुए व्यक्तियों से दूर रखिए-
वे अक्सर इलाज में अड़चन डालते हैं।
रोगी को आराम दीजिये और, यदि संभव हो, तो उसे खुश रखिये-
उसके डर को शान्त कीजिए और उसे आशावान बनाए रखिये। उसके लिए यह जरूरी है कि उसकी मानसिक हालत अच्छी रहे ताकि चिकित्सा में उससे सहयोग मिले और उसके अच्छा होने में सहायता पहुंचे।
रोगी को खुद अपनी चोट न देखने दीजिए-
बहुत ही गम्भीर चोट खाने के मामलों में, रोगी को यह न जानने दीजिए कि वह बुरी तरह चोट खा गया है। इस बात का यकीन कर लीजिए कि कोई ऐसी बात न की जाय जिससे उसे आगे और चोट लग जाये। आप संकट और गड़बड़ी से बच सकते हैं यदि आप रोगी के परिवार के सदस्यों को रोगी की हालत के बारे में यथोचित रूप से सूचित करते रहें। उनकी यह बता दीजिये कि रोगी किस जगह है, क्या उसे किसी अस्पताल में ले जाया जा रहा है, और उन्हें इसी तरह की दूसरी सूचनायें भी दीजिए जिनसे उन्हें मदद मिले। लेकिन आपका यह काम नहीं है कि आप रोगी की चोटों को बताएं या परिवार वालों को इलाज-सम्बन्धी विवरण दें।